AQLI News Oct 30 2019

उत्तरी भारत में करीब तीन गुना जानलेवा है वायु प्रदूषण, जिससे जीवनकाल हो रहा सात वर्ष कम

नीति-निर्माताओं और लोगों में व्यापक प्रसार के लिए एपिक के ‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स’ के हिंदी संस्करण का शुभारंभ
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शिकागो विश्वविद्यालय,अमेरिका की शोध संस्था ‘एपिक’ (Energy Policy Institute at the University of Chicago-EPIC) द्वारा तैयार ‘वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक’ (Air Quality Life Index - AQLI) का नया विश्लेषणदर्शाता है कि भारत के उत्तरी क्षेत्र यानी गंगा के मैदानी इलाके (Indo-GangeticPlain) में रह रहे लोगों की ‘जीवन प्रत्याशा’ (Life Expectancy) करीब 7वर्ष कम होने की आशंका है, क्योंकि इन इलाकों के वायुमंडलमें ‘प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों से होने वाला वायुप्रदूषण’ यानी पार्टिकुलेट पॉल्यूशन (ParticulatePollution) विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के तय दिशानिर्देशों को हासिल करने में विफल रहा है। शोध अध्ययनों केअनुसार इसका कारण यह है कि वर्ष 1998 से 2016 में गंगा के मैदानी इलाके में वायु प्रदूषण 72प्रतिशत बढ़ गया, जहां भारत की 40प्रतिशत से अधिक आबादी रहती है। वर्ष 1998 में लोगों के जीवनपर वायु प्रदूषण का प्रभाव आज के मुकाबले आधा होता और उस समय लोगों की जीवनप्रत्याशा में 3.7 वर्ष की कमी हुई होती।

दरअसल वायु प्रदूषण पूरेभारत में एक बड़ी चुनौती है, लेकिन उत्तरी भारतके गंगा के मैदानी इलाके, जहां बिहार, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, चंडीगढ़, दिल्ली और पश्चिम बंगाल जैसे प्रमुख राज्यऔर केंद्र शासित प्रदेश आते हैं, में यह स्पष्ट रूप से अलगदिखता है। वर्ष 1998 में गंगा के मैदानी इलाकों से बाहर केराज्यों में निवास कर रहे लोगों ने उत्तरी भारत के लोगों के मुकाबले अपने जीवनकालमें करीब 1.2 वर्ष की कमी देखी होती, अगरवायु की गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक को अनुरूप हुई होती। अब यह आंकड़ाबढ़ कर 2.6 वर्ष हो चुका है, और इसमेंगिरावट आ रही है, लेकिन गंगा के मैदानी इलाकों की वर्तमानस्थिति के मुकाबले यह थोड़ी ठीकठाक है।

इन निष्कर्षों की घोषणा ‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स’ के मंच पर इसके हिंदीसंस्करण में विमोचन करने के दौरान की गई, ताकि वायु गुणवत्ताजीवन सूचकांक उस ‘पार्टिकुलेट पॉल्यूशन’ पर अधिकाधिक नागरिकों और नीति-निर्माताओं को जागरूक और सूचनासंपन्न बनासके, जो पूरी दुनिया में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ाखतरा बन गया है।

शिकागो विश्वविद्यालय मेंअर्थशास्त्र के मिल्टन फ्राइडमैन प्रतिष्ठित सेवा प्रोफेसर और एनर्जी पॉलिसीइंस्टीट्यूट (EPIC) के निदेशक डॉ माइकल ग्रीनस्टोनने कहा कि ‘‘एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के हिंदी संस्करण कीशुरुआत के साथ, करोड़ों लोग यह जानने-समझने में समर्थ होपाएंगे कि कैसे पार्टिकुलेट पॉल्यूशन उनके जीवन को प्रभावित कर रहा है, और सबसे जरूरी यह बात जान पाएंगे कि कैसे वायु प्रदूषण से संबंधित नीतियांजीवन प्रत्याशा को बढ़ाने में व्यापक बदलाव पैदा कर सकती हैं।’’

अगर भारत अपने ‘राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम’ (NationalClean Air Program-NCAP) के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहाऔर वायु प्रदूषण स्तर में करीब 25 प्रतिशत की कमी को बरकराररखने में कामयाब रहा, तो ‘एक्यूएलआई’ यह दर्शाता है कि वायु गुणवत्ता में इस सुधार से आम भारतीयों की जीवनप्रत्याशा औसतन 1.3 वर्ष बढ़ जाएगी। वहीं उत्तरी भारत के गंगाके मैदानी इलाकों में निवास कर रहे लोगों को अपने जीवनकाल में करीब 2 वर्ष के समय का फायदा होगा।

आज दिल्ली में ‘एक्यूएलआई’ के हिंदी संस्करण के विमोचन के अवसर पर माननीयसांसद और ‘वैश्विक युवा नेता, विश्वआर्थिक मंच’ (Young Global Leader, World EconomicForum) श्री गौरव गोगोई ने कहा कि ‘‘अव्वलदर्जे की रिसर्च यह संकेत करती है कि वायु प्रदूषण में कमी और जीवनकाल में वृद्धिके बीच स्पष्ट संबंध है। स्वच्छ वायु की मांग के लिए नागरिकों के बीच जागरूकताबेहद महत्वपूर्ण है और एक्यूएलआई सही दिशा में एक कदम है। मैं 1981 के वायु अधिनियम (Air Act) में संशोधन के लिए संसदमें एक निजी विधेयक प्रस्तावित कर रहा हूं, जो बढ़ते वायुप्रदूषण के कारण पैदा हो रहे स्वास्थ्य संबंधी दुष्प्रभावों को रेखांकित करता है।’’

एक्यूएलआई से संबंधित स्टडीसमकक्ष-विशेषज्ञों के मूल्यांकन एवं अध्ययनों पर आधारित है,जिसे प्रोफेसर माइकल ग्रीनस्टोन और सह-लेखकों एवं शोधार्थियों कीटीम ने चीन के ‘यूनिक नैचुरल एक्सपेरिमेंट’ (UniqueNatural Experiment) से प्रेरित होकर तैयार किया है, जो चीन के ‘हुएई रिवर विंटर हीटिंग पॉलिसी’ से जुड़ी है। इस ‘प्राकृतिक प्रयोग’ ने उन्हें वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों को अन्य कारकों से अलग करने कामौका दिया, जो मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं और इसीक्रम में उन्होंने भारत तथा उन देशों में यह अध्ययन किया, जहांआज प्रदूषित सूक्ष्म तत्वों और धूलकणों की सघनता सबसे ज्यादा है। फिर उन्होंने इनअध्ययनों के परिणामों को विविध क्षेत्रों में बेहद स्थानीय स्तर पर ‘वैश्विक सूक्ष्म प्रदूषक मापदंडों’ (Global Particulate PollutionMeasurement) के साथ संयुक्त रूप से जोड़ दिया। इससे उपयोगकर्ताओं कोदुनिया के किसी क्षेत्र या जिले से संबंधित आंकड़ों पर दृष्टिपात करने का अवसरमिलता है और उनके जिले में स्थानीय वायु प्रदूषण के स्तर से उनके जीवन प्रत्याशापर पड़ रहे प्रभावों को समझने में मदद मिलती है।

हिंदी संस्करण की शुरुआत औरआधिकारिक वेबसाइट पर इससे जुड़ी जानकारी उपलब्ध कराने से करीब पिछले साल पहले आरंभहुए ‘एक्यूएलआई’ के प्रचार-प्रसारको और भी गति एवं मजबूती मिलेगी। ‘एक्यूएलआई’ अब तीन भाषाओं- अंग्रेजी, हिंदी तथा मंडेरिन चाइनीजमें उपलब्ध है और पांच भाषाओं में प्रमुख प्रदूषकों से संबंधित व्यक्तिगत विश्लेषणको मुहैया करा रहा है और इस सूचकांक का उद्देश्य दुनिया की अधिकाधिक आबादी कोसूचनासंपन्न बनाना है। यह मिशन सफल भी हो रहा है, करीब 161 देशों के लगभग 30 हजार लोगों ने इस मंच का इस्तेमालकिया है। साथ ही साथ, एक्यूएलआई की शुरुआत के बाद करीब 300 मीडिया संस्थानों, जिनकी पहुंच दुनिया भर में एकअरब से ज्यादा लोगों तक है, ने इस सूचकांक और इसकेमहत्वपूर्ण निष्कर्षों को रेखांकित और प्रसारित किया है। ‘एक्यूएलआई’ को ‘फास्ट कंपनी’ (Fast Company) द्वारा वर्ष 2019 का ‘दुनियाबदलने वाला विचार’ (World Changing Idea) का नामकरण भी कियागया है।

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