Search
The University of Chicago Phoenix The University of Chicago The University of Chicago
AQLI

सितम्बर 1, 2021

कठोर वायु प्रदूषण नीतियों से जीवन-प्रत्याशा में बढ़ोतरी-नए आंकड़े

वही स्वच्छ वायु नीतियां जो जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को घटा सकती हैं और जलवायु परिवर्तन की प्रबलता में सहायता कर सकती है, वह सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के निवासियों के जीवन में पांच वर्षों की बढ़ोतरी कर भी सकती हैं जबकि वैश्विक स्तर पर लोगों के जीवन में औसतन दो वर्षों की वृध्दि कर सकती है।

पिछले एक वर्ष में कोविड-19 लॉकडाउनों ने विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में नीला आसमान प्रस्तुत किया, जबकि जंगलों की आग ने जो सूखी और गर्म जलवायु के कारण उग्र हुई, हजारों किलोमीटर दूर के उन महानगरों में धूआं भर दिया जहां आसमान आमतौर पर साफ रहता है। ऐसी परस्पर विपरीत घटनाएं भविष्य के बारे में दो दृष्टिकोण प्रस्तुत करती हैं। भविष्य के उन रूपों का फर्क जीवाश्म ईंधन को घटाने की नीतियों में निहित हैं।

एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) से प्राप्त नए आंकड़े नीतिगत कार्रवाई नहीं होने पर विश्व में स्वास्थ्यगत खतरे को रेखांकित करते हैं। जब तक वैश्विक कणीय (पार्टिकुलेट) वायु प्रदूषण को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डबल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों तक घटा नहीं दिया जाता, औसत व्यक्ति की जीवन-प्रत्याशा में 2.2 वर्षों की कमी हो सकती है। विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों के निवासियों की आयु में 5वर्षों  से अधिक की कमी हो सकती है। मानव शरीर के भीतर अदृश्य रूप से सक्रिय कणीय(पार्टिकुलेट) प्रदूषण का जीवन-प्रत्याशा पर प्रभाव संक्रामक रोगों,  जैसे– क्षय-रोग, एचआईवी/एड्स, अभ्यासगत रोगों- जैसे धूम्रपान तथा युद्ध आदि से भी अधिक होता है।

“एक सचमुच के अप्रत्याशित वर्ष में गंदी वायु में सांस लेने के अभ्यस्त कुछ लोगों को स्वच्छ वायु का अनुभव हुआ और कुछ स्वच्छ वायु के अभ्यस्त लोगों ने गंदी वायु का अनुभव किया। इससे एकदम स्पष्ट हो गया कि नीतियों ने कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और स्थानीय वायु प्रदूषण एवं जलवायु परिवर्तन, दोनों में योगदान करने वाली जीवाश्म ईंधन को घटाने में नीतियां कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।” यह कथन माइकल ग्रीनस्टोन का है जो अर्थशास्त्र में मिल्टन फ्रीडमैन डिसस्टिंगुइश्ड सेवारत प्रोफेसर और युनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में इनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) के अपने सहकर्मियों के साथ एक्यूएलआई के निर्माता हैं। उन्होंने कहा कि “एएलक्यूआई यह दिखाता है कि नीतियों का हमारे स्वास्थ्य को सुधारने और आयु बढ़ाने में किस प्रकार लाभ हो सकता है।”

एक्यूआई की नई रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया में पृथ्वी के सर्वाधिक प्रदूषित देश- बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान हैं जिनमें विश्व की जनसंख्या की करीब एक चौथाई हिस्सा निवास करती है और लगातार विश्व की सर्वाधिक प्रदूषित पांच शीर्ष देशों में बने हुए हैं। एक्यूएलआई के अनुसार, समूचे उत्तर भारत में इसका प्रभाव कहीं अधिक आंका गया है, इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण का स्तर विश्व में सबसे उच्चतम स्तर पर है। अगर प्रदूषण की सांद्रता 2019 के स्तर पर बनी रही तो इस क्षेत्र जिसमें दिल्ली और कोलकाता जैसे विशाल महानगर शामिल है, के निवासियों की जीवन-प्रत्याशा में 9 वर्षों से अधिक की क्षति होगी।

खतरनाक है कि भारत में वायु-प्रदूषण का उच्च स्तर समय के साथ भौगोलिक रूप से फैला है। दो दशक पहले की तुलना में कणीय (पार्टिकुलेट) प्रदूषण केवल गंगा-घाटी का लक्षण नहीं रह गया है। उदाहरण के लिए ,प्रदूषण महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में भी इसतरह बढ़ा है कि उन राज्यों के निवासी  औसत व्यक्ति की जीवन-प्रत्याशा में वर्ष 2000 की तुलना में अतिरिक्त 2.5 से 2.9 वर्षों की क्षति हो रही है।

चीन एक महत्वपूर्ण मॉडेल है, जो दिखाता है कि नीतियों के जरिए कम समय में ही प्रदूषण में तेजी से कमी लाई जा सकती है। जब वर्ष 2013 में चीन ने “प्रदूषण के खिलाफ जंग” आरम्भ किया, उसके कणीय (पार्टिकुलेट) प्रदूषण में 29 प्रतिशत कमी आई है – जो वैश्विक स्तर पर वायु प्रदूषण में कमी का तीन-चौथाई हिस्सा है। चीन की सफलता बतलाता है कि विश्व के सर्वाधिक प्रदूषित देशों में भी प्रगति संभव है। दक्षिण एशिया में एक्यूएलआई आंकड़ा बताता है कि अगर प्रदूषण को डब्लूएचओ निर्देशावली के अनुसार घटा दिया जाए तो औसत व्यक्ति की आयु 5 वर्ष से अधिक बढ़ जाएगी। स्वच्छ वायु नीतियों का फायदा उत्तर भारत जैसे प्रदूषण के हॉटस्पॉट्स वाले क्षेत्रों में कहीं अधिक है जहां 480 मिलियन लोग जिस वायु में सांस लेते हैं, उसका प्रदूषण स्तर विश्व के किसी भी इलाके प्रदूषण स्तर से दस गुना अधिक है।

एक्यूएलआई के निर्देशक केन ली ने कहा कि “बुरी खबर है कि वायु प्रदूषण का सर्वाधिक असर दक्षिण एशिया में केन्द्रीत है। अच्छी खबर यह है कि इस क्षेत्र की सरकारें समस्या की गंभीरता को स्वीकार करने लगी हैं और अब कार्रवाई करना शुरु कर रही हैं।” उन्होंने कहा कि “ भारत सरकार की राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) स्वच्छ वायु और लंबा जीवन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए एक नया कमीशन स्थापित किया है। ”