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अगस्त 29, 2023
अगस्त 29, 2023
पार्टिकुलेट एयर पोल्यूशन (छोटे कणों से होने वाला वायु प्रदूषण) मानव स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाहरी खतरा बना हुआ है,लेकिन वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर इसका अधिकांश प्रभाव सिर्फ छह देशों में केंद्रित है. साथ ही, वर्तमान में वायु प्रदूषण से सर्वाधिक प्रभावित देशों के पास ऐसे बुनियादी उपकरणों का अभाव है जिनसे पूर्व में वायु गुणवत्ता में सुधार हुए थे.
जैसे-जैसे 2021 में वैश्विक प्रदूषण बढ़ा, वैसे-वैसे मानव स्वास्थ्य पर इसका बोझ भी बढ़ा. नए वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक (एक्यूएलआई) आंकड़ों के अनुसार. यदि वैश्विक पार्टिकुलेट पोल्यूशन (पीएम2.5) को स्थायी रूप से कम कर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देश के अनुरूप कर लिया जाता,तो इससे औसत व्यक्ति के अपनी जीवन प्रत्याशा में 2.3 वर्ष की वृद्धि होती या संयुक्त रूप से जीवन के 17.8 अरब वर्ष बचाए जा सकते थे.
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट होता है कि पार्टिकुलेट पोल्यूशन मानव स्वास्थ्य के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाहरी खतरा बना हुआ है. जीवन प्रत्याशा पर इसका दुष्प्रभाव धूम्रपान से होने वाले नुकसान के बराबर है. साथ ही यह नुकसान शराब और असुरक्षित पानी के उपयोग से होने वाले नुकसान से 3 गुना से अधिक और कार दुर्घटनाओं जैसी सड़क दुर्घटनाओं से होने वाले नुकसान से से 5 गुना से अधिक है. फिर भी, दुनिया भर में प्रदूषण की चुनौती बेहद असमान है.
माइकल ग्रीनस्टोन अर्थशास्त्र के मिल्टन फ्रीडमैन डिस्टिंगग्विश्ट सर्विस प्रोफेसर हैं. इन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट (ईपीआईसी) की अपनी टीम के साथ एक्यूएलआई विकसित किया है. माइकल ग्रीनस्टोन कहते हैं, “वैश्विक जीवन प्रत्याशा पर वायु प्रदूषण का तीन-चौथाई प्रभाव केवल छह देशों, बांग्लादेश, भारत, पाकिस्तान, चीन, नाइजीरिया और इंडोनेशिया से संबंधित है. यहाँ के लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण एक से छह साल से अधिक तक का जीवन खो देते हैं. पिछले पांच वर्षों से, वायु गुणवत्ता और इसके स्वास्थ्य परिणामों पर एक्यूएलआई की स्थानीय जानकारी को मीडिया में पर्याप्त जगह मिली है और राजनीतिक क्षेत्र में भी इस पर व्यापक चर्चा हुई है. लेकिन इन वार्षिक सूचनाओं को दैनिक और स्थानीय स्तर पर प्राप्त होने वाले आंकड़ों से समृद्ध करने की ज़रूरत ज़रूरत है.”
वास्तव में, कई प्रदूषित देशों के पास वायु प्रदूषण से निपटने संबंधी बुनियादी ढांचे का अभाव है. एशिया और अफ्रीका इसके दो सबसे चिंताजनक उदहारण हैं. प्रदूषण के कारण जीवन के वर्षों में होने वाली कुल क्षति के 92.7 प्रतिशत के लिए ये दोनों महादेश जिम्मेदार हैं. इसके बावजूद यहाँ की क्रमशः सिर्फ 6.8 और 3.7 फीसदी सरकारें ही पूरी तरह से पारदर्शी वायु गुणवत्ता आंकड़े प्रदान करती हैं. साथ ही एशिया और अफ्रीका के क्रमशः केवल 35.6 और 4.9 प्रतिशत देशों में ही वायु गुणवत्ता मानक हैं. ऐसा तब है जबकि पारदर्शी आंकड़े और गुणवत्ता मानक – ये दोनों ही नीति आधारित कार्रवाई के बुनियादी घटक हैं.
वैश्विक वायु गुणवत्ता के बुनियादी ढांचे में सामूहिक वर्तमान निवेश भी इस मायने में असंतुलित है कि जहाँ वायु प्रदूषण का मानव जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव है वहां पर्याप्त निवेश नहीं हो रहा है. जबकि एचआईवी/एड्स, मलेरिया और तपेदिक के लिए एक बड़ा वैश्विक कोष है जो इन बिमारियों से निपटने के लिए सालाना 4 अरब अमरीकी डालर उपलब्ध कराता है, लेकिन वायु प्रदूषण के लिए ऐसा कोई बड़ा और समन्वित संसाधन नहीं है. वास्तव में, संपूर्ण अफ़्रीका महाद्वीप को वायु प्रदूषण के लिए लोकोपकारी निधि के रूप में 3 लाख अमेरिकी डॉलर से कम प्राप्त होते है जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका में एकल-परिवार घर (सिंगल फैमिली होम) के वर्तमान अनुमानित औसत कीमत के बराबर है. एशिया (चीन और भारत को छोड़कर) को केवल 14 लाख अमरीकी डालर मिलते हैं. क्लीन एयर फंड के अनुसार, यूरोप, संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा को 3.4 करोड़ अमरीकी डालर प्राप्त होते हैं.
क्रिस्टा हेसनकोफ एक्यूएलआई और ईपीआईसी के वायु गुणवत्ता कार्यक्रम के निदेशक हैं. उन्होंने कहा, “विशेष रूप से समय पर, विश्वसनीय और पारदर्शी वायु गुणवत्ता आंकड़े नागरिक समाज और सरकार के स्वच्छ वायु प्रयासों का मुख्य आधार साबित हो सकते हैं. इससे वह जानकारी उपलब्ध होगी जो लोगों और सरकारों के पास नहीं है और जो बेहतर सूचित नीतिगत निर्णय लेने में सहयोग करता है. सौभाग्य से, हमारे पास वर्तमान स्थिति को पूरी तरह बदलने में भूमिका निभाने का बड़ा अवसर दिखाई देता है. ऐसा हम अनुपलब्ध बुनियादी ढांचे का सहयोगात्मक रूप से निर्माण करने के लिए अपने निवेश को बेहतर तरीके से लक्षित और इसमें वृद्धि करने के जरिए कर सकते हैं.
पूरी रिपोर्ट इस लिंक पर पढ़ें: रिपोर्ट
दक्षिण एशिया
ग्रह पर प्रदूषण का घातक प्रभाव दक्षिण एशिया से अधिक किसी अन्य स्थान पर दिखाई नहीं देता है, यहाँ दुनिया के चार सबसे प्रदूषित देश स्थित हैं और वैश्विक आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा रहता है. बांग्लादेश, भारत, नेपाल और पाकिस्तान के एक्यूएलआई डेटा से पता चलता है कि प्रदूषण का वर्तमान उच्च स्तर जारी रहने से यहाँ के निवासियों के जीवन के औसतन लगभग 5 वर्ष कम हो गए जबकि सबसे प्रदूषित क्षेत्रों में और भी अधिक नुकसान हुआ. यह प्रदूषण के कारण वैश्विक स्तर पर जीवन के कुल वर्षों के नुकसान के आधे से अधिक के बराबर है.
फैक्टशीट के लिए देखें: बांग्लादेश, भारत, नेपाल, पाकिस्तान,
चीन
हालाँकि दुनिया भर में वायु प्रदूषण कम करने की चुनौती कठिन दिखाई दे रही है, लेकिन चीन को इसमें उल्लेखनीय सफलता मिली है. इसने “प्रदूषण के खिलाफ युद्ध” शुरू होने से एक साल पहले यानी की 2013 के बाद से प्रदूषण में 42.3 प्रतिशत की कमी की है. इन सुधारों के कारण, अगर प्रदूषण में कमी जारी रहती है तो औसत चीनी नागरिक 2.2 वर्ष अधिक जीने की उम्मीद कर सकते हैं. हालाँकि, चीन में प्रदूषण अभी भी डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश से छह गुना अधिक है, जिससे जीवन प्रत्याशा 2.5 वर्ष घट गई है.
फैक्टशीट के लिए देखें: चीन फैक्टशीट
दक्षिण पूर्व एशिया
दक्षिण एशिया की तरह, लगभग पूरे दक्षिण पूर्व एशिया (99.9 प्रतिशत) को अब प्रदूषण के असुरक्षित स्तर वाला क्षेत्र माना जाता है, जहाँ कुछ क्षेत्रों में एक ही वर्ष में प्रदूषण 25 प्रतिशत तक बढ़ गया. दक्षिण पूर्व एशिया के सबसे प्रदूषित हिस्सों में रहने वाले निवासियों की जीवन प्रत्याशा औसतन 2 से 3 साल कम होने की आशंका है.
फैक्टशीट के लिए देखें: दक्षिण पूर्व एशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड
मध्य और पश्चिम अफ़्रीका
दक्षिण एशियाई देशों की मीडिया में सबसे अधिक चर्चा यहाँ मौजूद वायु प्रदूषण के चरम स्तर के कारण होती है, जबकि डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, रवांडा, बुरुंडी और रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे अफ्रीकी देश दुनिया के दस सबसे प्रदूषित देशों में शामिल हैं. यहाँ के सबसे प्रदूषित इलाकों में, प्रदूषण स्तर डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देशों से 12 गुना अधिक है और जीवन प्रत्याशा में 5.4 वर्ष तक की कमी हो रही है. इस तरह अब वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एचआईवी/एड्स और मलेरिया जैसी इस क्षेत्र की चर्चित जानलेवा बीमारियों जितना बड़ा ख़तरा है.
देखें फैक्टशीट: मध्य और पश्चिम अफ़्रीका और नाइजीरिया
लैटिन अमेरिका
पूरे लैटिन अमेरिका में औसत वायु गुणवत्ता का स्तर अपेक्षाकृत निम्न और असुरक्षित है. यहाँ के सबसे प्रदूषित क्षेत्र ग्वाटेमाला, बोलीविया और पेरू में स्थित हैं जहाँ की वायु गुणवत्ता पुणे, भारत और हार्बिन, चीन जैसे प्रदूषण के हॉटस्पॉट जितनी ख़राब है. इन क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता डब्ल्यूएचओ दिशानिर्देश के अनुरूप होने पर यहाँ के औसत निवासी की जीवन प्रत्याशा 3 से 4.4 वर्ष बढ़ जाएगी.
फैक्टशीट देखें: कोलंबिया और ग्वाटेमाला
संयुक्त राज्य अमेरिका
संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा स्वच्छ वायु कानून पारित करने के बाद से प्रदूषण में 1970 की तुलना में 64.9 प्रतिशत की कमी आई है जिससे औसत अमेरिकी का जीवन काल 1.4 वर्ष बढ़ गया है. फिर भी, देश का 96 प्रतिशत हिस्सा अभी भी डब्ल्यूएचओ के 5 µg/m³ के नए दिशानिर्देश को पूरा नहीं करता है. इस वर्ष, ईपीए ने राष्ट्रीय मानक को 12 μg/m³ से घटाकर 9-10 µg/m³ करने का प्रस्ताव रखा है, यदि प्रस्तावित मानक की ऊपरी सीमा को प्राप्त कर लिया जाता है तो कुल 32 लाख जीवन वर्ष बढ़ जाएंगे. 2021 में, जंगल की आग के प्रभाव के कारण शीर्ष 30 सबसे प्रदूषित काउंटियों में से 20 कैलिफोर्निया में स्थित थीं.
फैक्टशीट के लिए देखें: ……………………..
यूरोप
यूरोप में, एयर क्वालिटी फ्रेमवर्क डायरेक्टिव शुरू होने के बाद से 1998 की तुलना में प्रदूषण में लगभग 23.5 प्रतिशत की कमी आई है, जिससे यहाँ के निवासियों की जीवन प्रत्याशा 4.5 महीने बढ़ गई है. फिर भी, यूरोप का 98.4 प्रतिशत हिस्सा अभी भी डब्ल्यूएचओ की नई गाइडलाइन को पूरा नहीं करता है. 2022 में, यूरोपीय आयोग ने अपने वर्तमान वार्षिक प्रदूषण मानक 25μg/m³ को 2030 तक धीरे-धीरे घटाकर 10μg/m³ करने का प्रस्ताव रखा. यदि यह लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाता है तो निवासियों को 8.03 करोड़ जीवन वर्ष प्राप्त होंगे. प्रदूषित हवा के कारण पूर्वी यूरोप के निवासी अपने पश्चिमी पड़ोसियों की तुलना में 7.2 महीने कम जीवन जी रहे हैं.
फैक्टशीट के लिए देखें: यूरोप