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जून 14, 2022

दुनिया के अधिकांश लोग असुरक्षित हवा में सांस लेते हैं जिससे वैश्विक जीवन संभाव्यता 2 वर्षों से भी अधिक घट जाती है

कोविड-19 के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुस्ती आई, लेकिन कणीय प्रदूषण इसके बाद भी ऊंचे स्तर पर ही रहा। साथ ही, स्वास्थ्य पर पड़ने वाले निम्न स्तरीय प्रदूषण के प्रभाव के संबंध में काफी प्रमाण मिलने पर, नए दिशानिर्देश जारी किये गए जिसके कारण दुनिया का अधिकांश हिस्सा असुरक्षित क्षेत्र के तहत आ गया।

कोविड-19 महामारी के पहले साल में दुनिया की अर्थव्यवस्था में सुस्ती आई। लेकिन इसके बावजूद, पूरी दुनिया में औसत कणीय प्रदूषण (PM2.5) मोटे तौर पर 2019 के स्तर पर ही बना रहा। साथ ही, ऐसे प्रमाणों की संख्या बढ़ती गई है जो दर्शाते हैं कि बहुत निम्न स्तर का प्रदूषण भी मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है। इसके कारण हाल में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) को अपने दिशानिर्देश में संशोधन करना पड़ा और कणीय प्रदूषण (PM2.5) के सुरक्षित समझे जाने वाले स्तर को 10 µg/m3 से घटाकर 5 µg/m3 करना पड़ा। इस कारण दुनिया की आबादी का 97.3 प्रतिशत हिस्सा असुरक्षित क्षेत्र के तहत आ गया। 

ए क्यू एल आइ ने पाया कि कणीय प्रदूषण (PM2.5) के कारण औसत वैश्विक जीवन संभाव्यता 2.2 वर्ष घट जाती है। इसका अर्थ है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशानिर्देश (5 µg/m3)  का पालन करने पर,  पूरी दुनिया के सभी लोगों की संयुक्त रूप से जितनी ज़िंदगी होती उसमें 17 अरब जीवन-वर्ष घट रहे हैं। जीवन संभाव्यता पर पड़ने वाला यह प्रभाव धूम्रपान के तुलनीय, अल्कोहल और असुरक्षित जल के उपयोग का 3 गुना से अधिक , एचआइवी/ एड्स का 6-गुना, और विवाद तथा आंतकवाद का से 89-गुना है।  

‘‘अगर मंगल ग्रह के निवासी आकर धरती पर कोई ऐसी चीज़ छिड़क दें जिससे जीवन संभाव्यता में दो वर्षों से भी अधिक की कमी आ जाए, तो यह दुनिया भर के लिए आपात स्थिति होगी। दुनिया के बहुत सारे हिस्सों में ऐसी ही स्थिति है। लेकिन ऐसी चीज़े दुनिया के बाहर के आक्रमणकारी नहीं छिड़क रहे हैं। हमलोग खुद ऐसा कर रहे हैं।’’ – शिकागो विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के मिल्टन फ्रीडमैन डिस्टिंग्विश्ड सर्विस प्रोफ़ेसर और विश्वविद्यालय के एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट (एपिक) के अपने सहकर्मियों के साथ ए क्यू एल आइ. (वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक) की स्थापना करने वाले माईकल ग्रीनस्टोन कहते हैं। ‘‘सौभाग्यवश, इतिहास हमें सिखाता है कि यह इस तरह हो ऐसा ज़रूरी नहीं है। दुनिया के कई भागों में, जैसे कि संयुक्त राज्य अमेरिका में, बदलाव की समान रूप से मज़बूत चाहत द्वारा समर्थित सशक्त नीतियों के कारण वायु प्रदूषण घटाने में सफलता मिली है।’’

दक्षिण एशिया : प्रदूषण का घातक प्रभाव जितना दक्षिण एशिया में दिखता है उतना दुनिया के किसी दूसरे क्षेत्र में नहीं दिखता। दुनिया में प्रदूषण से जीवन पर कुल जितना बोझ पड़ता है उसमें से आधे से अधिक इसी क्षेत्र में पड़ता है। अगर प्रदूषण का वर्तमान उच्च स्तर बना रहता है, तो इस क्षेत्र के निवासियों की ज़िंदगी औसतन 5 वर्ष के आसपास, और अधिक प्रदूषित क्षेत्रों में तो उससे भी अधिक घट जाने की आशंका है। वर्ष 2013 से पूरी दुनिया में जितना प्रदूषण बढ़ा है उसका लगभग 44 प्रतिशत योगदान अकेले भारत से है।

दक्षिण-पूर्व एशिया : अब दक्षिण एशिया की तरह लगभग पूरे (99.9 प्रतिशत) दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रदूषण के स्तरों को असुरक्षित माना जाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया के कुछ क्षेत्रों में तो एक ही वर्ष में प्रदूषण लगभग 25 प्रतिशत बढ़ गया है। दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे प्रदूषित क्षेत्रों (मांडले, हनोई और जकार्ता के आसपास के क्षेत्र) के निवासियों की जीवन संभाव्यता औसतन 3 से 4 वर्ष से घट जाने की आशंका है।

मध्य और पश्चिम अफ़्रीका: इसी प्रकार, लगभग समूचे (97 प्रतिशत से अधिक) मध्य और पश्चिम अफ़्रीका  को विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देशों के मुताबिक असुरक्षित माना जाता है। ए क्यू एल आइ ने पाया है कि यहां के सर्वाधिक प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की ज़िंदगी औसतन 5 वर्ष से घट जाने की आशंका है। मध्य और पश्चिम अफ़्रीका  में स्वास्थ्य के लिए वायु प्रदूषण का आज उतना ही खतरा है जितना एचआइवी/ एड्स और मलेरिया जैसे कुख्यात घातक रोगों का है। इसलिए क्यूंकि  जीवाश्म ईंधनों  का उपयोग बढ़ते ही जाने की आशंका है। 

चीन : जबकि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में हाल के वर्षों में प्रदूषण में वृद्धि देखी गई है, 2013 के बाद वैश्विक प्रदूषण में जितनी कमी आई है, वह पूरी तरह से चीन के कारण आई है। प्रदूषण में चीन की महत्वपूर्ण गिरावट के बिना, इस समय में वैश्विक औसत प्रदूषण में वृद्धि दिखाई देती।

संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप : संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में लगातार वायु प्रदूषण संबंधी सख्त नीतियां लागू करने से कणीय प्रदूषण काफी घटा है। लेकिन स्वास्थ्य पर निम्न स्तर के प्रदूषण का भी प्रभाव पड़ने के नए प्रमाणों से पता चलता है कि लगभग पूरे संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देश के अनुरूप नहीं है। ऐसी आबादी का हिस्सा संयुक्त राज्य अमेरिका में 7.6 प्रतिशत से बढ़कर 92.8 प्रतिशत और यूरोप में 47.2 प्रतिशत से 95.5 प्रतिशत पहुंच गया। अगर प्रदूषण विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देश के स्तर तक आ जाए, तो संयुक्त राज्य अमेरिका में 6.8 करोड़ जीवन-वर्ष और यूरोप में 52.7 करोड़ जीवन-वर्ष बच सकते हैं। प्रदूषण की स्थिति में सुधार का सर्वाधिक लाभ मिलने की संभावना कुछ खास क्षेत्रों में संकेंद्रित है, जैसे कि हाल के वर्षों में जंगल की आग का ऐतिहासिक रूप से खतरा झेल रही कैलिफोर्निया की मारीपोसा काउंटी में और पूर्वी यूरोप में। 

‘‘हमने ए क्यू एल आइ  को अत्याधुनिक विज्ञान पर आधारित विश्व स्वास्थ्य संगठन के नए दिशानिर्देश के अनुसार अपडेट किया है। इससे प्रदूषित हवा में सांस लेने की हम वास्तव में जो कीमत चुका रहे हैं, उसके संबंध में हमारी पकड़ मज़बूत हुई है।’’ – ए क्यू एल आइ  की निदेशक क्रिस्टा हेसेनकॉप्फ कहती हैं। ‘‘अब मानव स्वास्थ्य पर प्रदूषण के प्रभाव के बारे में हमारी समझ में सुधार हुआ है। इसलिए सरकारों के सामने यह स्थिति मज़बूती से सामने आ गई है कि वे अति आवश्यक नीतिगत मुद्दे के रूप में इसको प्राथमिकता दें।’’